ॐ श्री परमात्मने नम:
तत्परता मुख्य चीज़ है ईश्वर प्राप्ति मे , गुरु तत्व के भक्त नही होते उनको ईश्वर प्राप्ति नही होती , सुविधा के भक्त होते है वो रह जाते है. हा गदधर थे भक्त तो उनके सामने देवी प्रगट हो गयी , पक्का पुजारी होना चाहिए . एसे पक्का गुरु भक्त हो तो गुरु तत्व प्रगट हो जाता है, देर कहा हैं, देर हे स्न्सार की अहँता और ममता को पोषने मेी महत्व भुध्दि है और ईश्वर मे गौण बुध्धि है. ईश्वर एक फेशन हो गया है. ये करू वो करू ये पालु वो पालु मे राहु मेरा रहे और ईश्वर मिल जाए. एसे मूर्ख लोग हैं. वैसे भई बुध्दि मारी गयी है कालजुग मे तो , अपना हित किसमे हैं वो पता ही नही चलता .एसा निर्णय लेते हैं,
एक बार लक्ष्मण जी ने राम जी ने को प्रभु कुटिया कहा बनाए 1 पहेर 2 पहेर 3 पहेर गये ना लक्ष्मण जी दिखे ना लक्ष्मण जी की कुटिया दिखी . फिर सीता माता ने देखा की लक्ष्मण जी दूर जाडी ओ मे पड़े पड़े रो रहे है . देवर रो रहे है तो सीता जी तो माता समान ही थी ना समान क्या माता हितो थी . क्यू बेटे रोते हो क्या हुआ . लक्ष्मण जी ने कहा मे अनाथ हो गया मा मे अनाथ हो गया . क्यू कैसे अनाथ हो गये . लक्ष्मण जी ने कहा प्रभु ने मेरा त्याग कर दिया . कैसे त्याग किया , वो रोते ही जा रहे हे - माता जी पूछती जाती हे अरे बोलो तोसही क्या हुआ क्यो त्याग कर दिया . लक्ष्मण जी ने कहा मेरे के अपने मन के हवाले कर दिया. जो तुमको ठीक लगे अच्छा लगे वाहा बनाओ . मे अनाता हो गया मा मे अनाथ हो गया जन्मो से मेरा मान मूज़े भटकता फिरता है फिर मेरे को इसी के हवाले कर दिया .के जहा तुमको ठीक लगे वाहा कुटिया बनओ. मेरे से कोई अपराध हो गया हैं. मूज़े आदेश नही दिया और मेरे मनके हवाले मूज़े कर दिया .ये जा के माता ने रामजी केओ कहा . फिर रामजी ने आके कहा की यहा आओ यहा देखो ये पूर्वा दिशा हैं ढलान के पास एधर उधर कुछ यहा वाहा करके ऐसे बनाओ करके आदेश दे दिया .की यह वास्तु शस्त्र के अनुसार बढ़ीया है. और आनंद दाई होगा .ऐसा करके लक्ष्मंका दिल रख लिया और लक्ष्मण भी सावधान हो गया मन मुख होने से .
नही के आज कल के लोगो की तरह अपनी मंकी गुरु और ईश्वर से करवाते है फिर आपस मे लड़ते है जघड़ते है एक दूसरा अपने अपने मान की करवने मे लगे रहते है . इस मे गुरु की होली हो जाती है गुरु मथानी की तरह फिरते रहेते है .धान्या है ऐसे गुरु को की ऐसा मथानी की तरह विलोटे हुए भी अपना सेवा कार्य को नही छोड़ते. और समाज के लए मकखन निकल ते रहेते हैं.
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