जो जागत सो पावत है पुस्तक से . . .
अमी सांगतो वेद सांगते |
"हम जो बोलते है वो वेद बोलते है"
ब्रह्मज्ञान हो जाने के बाद ब्रह्मज्ञानी शास्त्रो का आधार लेकर बोले या ऐसे ही बोले, उनकी वाणी वेदवाणी हो जाती है. उनके लिए हर जल गंगाजल हो जाता है. वह जिस भूमि पर पैर रखते है वो भूमि काशी बन जाती है. वह जिस वास्तु को स्पर्श करते है वो प्रशाद बन जाता है. वे जो अक्षर बोलते है वह मन्त्र बन जाता है. अगर वे महापुरुष मात्र "ढ़े... ढ़े... करो" वैसा कह दे और उसे श्रद्धा के साथ "ढ़े... ढ़े..." करने वाले को भी लाभ होता है.
अगर श्रद्धालु सोचे की ये "ढ़े... ढ़े..." कोई मन्त्र नही है परंतु ये महापुरुषने कहा है और मैं इसका पक्के विश्वाश के साथ इस मन्त्र का जप कुरुँगा - तो उसे लाभ होता ही है.
|| मंत्रमुलन गुरोर्वाक्यम ||
जिसके वचन मन्त्रके मूल बन जाते है उसको संसार की किसीभी वास्तु की ज़रूरत नही पड़ती. उनके लिए कोईभी वास्तु अप्राप्य नही.
..हरी ओम..
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